ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।। ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।।
बस फिर... विस्मृत हो जाती है अंतर्मन में व्याप्त गीता की सीख, मद में चूर, अनसुनी कर बैठता है अ... बस फिर... विस्मृत हो जाती है अंतर्मन में व्याप्त गीता की सीख, मद में चूर, अन...
तेरे बस सम्मान को, माना जग ने मान तेरे बस सम्मान को, माना जग ने मान
क्या करेंगे पहुंचकर हम चांद - तारों पर भयभीत स्वयं कैद होकर भय एक कृमि का मानव मात्र क्या करेंगे पहुंचकर हम चांद - तारों पर भयभीत स्वयं कैद होकर भय एक कृमि ...
तर बतर हो जाए हर आह भी के सुकून मिले कातिल को मेरे तर बतर हो जाए हर आह भी के सुकून मिले कातिल को मेरे
तुम बढ़ती रहो अब निरन्तरा ॥ ओ विशालिनी, ओ दयालिनी। ओ दुखभञ्जिनी, ओ मालिनी॥ इतनी तू महिमा मन्डित ... तुम बढ़ती रहो अब निरन्तरा ॥ ओ विशालिनी, ओ दयालिनी। ओ दुखभञ्जिनी, ओ मालिनी॥ इत...